अलीगढ़, 15 सितंबरः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एम जे वारसी ने मौलाना आज़ाद उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के सेंटर फार प्रोफेशनल डेवलपमेंट आफ उर्दू मीडियम टीचर्स (सीपीडीयूएमटी) द्वारा ‘डिजिटल युग में अंग्रेजी भाषा शिक्षणः चुनौतियां और अवसर’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय आनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी में ‘टीचिंग इंग्लिश आनलाइन’ विषय पर उद्घाटन भाषण प्रस्तुत करते हुए बताया कि कोविड महामारी के उपरांत अंग्रेजी भाषा के आनलाइन शिक्षण को सिंक्रोनाइज़ करने की प्रक्रिया किस प्रकार संक्रमण से प्रभावित हुई है।
एलन एंड वुड (2020) का हवाला देते हुए प्रोफेसर वारसी ने कहा कि हम प्रत्यक्ष शिक्षण में जो करते हैं उसे ठीक से दोहरा नहीं सकते हैं, लेकिन हम समान परिणाम प्राप्त करने के तरीके खोज सकते हैं।
उन्होंने कहा कि कोविड के बाद के परिदृश्य में, आनलाइन शिक्षण आधुनिक उच्च शिक्षा की आधारशिला बन गया, लेकिन यह अवधारणा महामारी-पूर्व के दिनों में भी मौजूद थी। भारत में महामारी से पहले इंजीनियरिंग इंग्लिश, बिजनेस इंग्लिश, मेडिकल इंग्लिश और एविएशन इंग्लिश को आनलाइन पढ़ाया जा रहा था।
उन्होंने जोर दिया कि शिक्षण का आनलाइन मोड में पारगमन चुनौतीपूर्ण है, जिससे कक्षाओं की प्रकृति और परीक्षा के भविष्य पर बहस हो रही है। यह मानते हुए कि महामारी अपेक्षा से अधिक समय तक चलेगी, देश भर के शिक्षकों ने आनलाइन प्लेटफार्म जैसे ब्लैकबोर्ड लर्न, स्काइप, गूगल हैंगआउट, क्लासरूम, मीट, व्हेयरबाई, जूम, वेबरूम, एडमोडो और माइक्रोसॉफ्ट टीम्स को शिक्षण कार्यों के लिए तेजी से अपनाया।
प्रोफेसर वारसी ने कहा कि अंग्रेजी शिक्षण के लिए दक्षता के एक अलग स्तर की आवश्यकता होती है और यह कार्य अधिक संवादात्मक होता है। शिक्षकों ने कई संचार उपकरणों का उपयोग करके वास्तविक समय की बातचीत को जोड़ने के तरीके तेजी से खोजे हैं । संसाधनों के विस्तृत चयन के साथ ट्यूटोरियल को और अधिक लचीला बनाया गया है।
उन्हों ने कहा कि आनलाइन शिक्षण कई मायनों में फायदेमंद है। इसने शिक्षकों को छात्रों के प्रश्नों का सरलता से उत्तर देने में मदद की है और एक बड़ी कक्षा को संभालने के मुक़ाबले इस पद्दति के शिक्षण में कम प्रयास और ऊर्जा लगती है।
आनलाइन शिक्षण के लिए आवश्यक शर्तों पर बोलते हुए प्रोफेसर वारसी ने कहा कि शिक्षकों के पास संचार और समय प्रबंधन का उत्कृष्ट कौशल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को कंप्यूटर और सोशल मीडिया के प्रयोग की पूरी जानकारी होनी चाहिए और छात्रों का आंकलन करने में पर्याप्त रूप से योग्य होना चाहिए।
उन्होंने भिन्न रूप से सक्षम छात्रों के लिए इलेक्ट्रानिक प्रकाशन और डिजिटल एक्सेसिबल इंफार्मेशन सिस्टम के साथ टाकिंग बुक्स जैसी तकनीकी सहायता के बारे में भी बात की।
प्रोफेसर वारसी ने कहा कि “आनलाइन शिक्षण प्रक्रिया शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए सुविधाजनक प्रतीत होती है। एक ओर जहां यह वैकल्पिक शिक्षण विधियों में शिक्षकों के पेशेवर कौशल के विकास में सहायक है, वहीं दूसरी ओर यह छात्रों को न केवल उनके ज्ञान के अपेक्षित स्तर तक पहुंचने में मदद कर रहा है बल्कि उन्हें प्रौद्योगिकी के बारे में भी जागरूक बना रहा है जिसका उपयोग वे पढाई पूरी करने के उपरांत अपने प्रैक्टिकल जीवन में भी कर सकते हैं।
उन्होंने ड्रापबाक्स, अमेज़न क्लाउड ड्राइव, गूगल डाक्स आदि के उपयोग और पाठ्यक्रम में मल्टीमीडिया के एकीकरण पर भी प्रकाश डाला।
प्रोफेसर वारसी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ‘मिश्रित शिक्षा; की अवधारणा को भी चित्रित किया जो 40 प्रतिशत पाठ्यक्रमों को आनलाइन पढ़ाए जाने और शेष को आफ़लाइन कक्षाओं में वितरित करने की सिफारिश करता है।
उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की धारा 23 पर भी अपने विचार व्यक्त किये जिसका शीर्षक ‘प्रौद्योगिकी उपयोग और एकीकरण’ है, जो डिजिटल सामग्री के निर्माण, डिजिटल बुनियादी ढांचे के विकास और कालेजों और संस्थानों की ई-लर्निंग जरूरतों की निगरानी के लिए क्षमता निर्माण पर केंद्रित है।