हिन्दी की जीवंतता का कारण उसकी सहज, उदात्त प्रकृति हैः प्रो. हरिशंकर मिश्र

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अलीगढ़, सितंबर 14ः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के हिन्दी विभाग तथा राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्त्वावधान में हिन्दी दिवस कार्यक्रम गूगल मीट के माध्यम से आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष एवं माननीय कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने की। इस आयोजन के प्रमुख वक्ता के रूप में प्रो. हरिशंकर मिश्र, प्रोफेसर एमेरिटस, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने ‘आज़ादी के 75 वर्ष: हिन्दी का यथार्थ और उसकी चुनौतियाँ’ विषय पर महत्त्वपूर्ण व्याख्यान दिया।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने हिन्दी भाषा के व्यापक प्रचार-प्रसार की ओर इंगित करते हुए कहा कि कई यूरोपीय भाषाओं की तुलना में हिंदी भाषा का परिवार कहीं अधिक बड़ा और विशाल है। हिन्दी भाषा-भाषी समुदाय विश्व के कोने-कोने में फैले हुए हैं। भाषाओं के पठन-पाठन के संबंध में भारतीय शिक्षा नीति के पहल का स्वागत करते हुए उन्होंने हिन्दी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं को लेकर अन्तरानुशासनीय शोध की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही, राजभाषा कार्यान्वयन समिति के माध्यम से भविष्य में आयोजित होने वाले अन्य सभी कार्यक्रमों को भी उन्होंने पर्ू्ण सहयोग प्रदान करने का आश्वासन दिया।

मुख्य वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए प्रख्यात विद्वान, प्रो. हरिशंकर मिश्र ने प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक हिन्दी के आविर्भाव एवं विकास के विविध सोपानों पर प्रकाश डाला। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख करते हुए हिन्दी को भावात्मक एकता के साधन के रूप में माना। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय आदि कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वाधीनता आंदोलन के दौर में राष्ट्र की भाषा के रूप में हिन्दी की महत्ता और अनिवार्यता को प्रतिपादित किया। हिन्दी को सुसंगठित एवं व्यापक चरित्र प्रदान करने में विभिन्न बोलियों और भाषाओं के योगदान का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी की सहज, उदात्त प्रकृति उसे जीवंतता प्रदान करती है, सर्वग्राह्य बनाती है।

राजभाषा कार्यान्वयन समिति के सचिव तथा अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, प्रो. रमेश चंद ने अपने वक्तव्य में हिन्दी के भाषिक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसे जन-जन ऐसी भाषा बताया जिसमें समय-समय पर अनेक भाषाओं, बोलियों के शब्द, पद और मुहावरे मिलते चले गए। उन्होंने हिन्दी भाषा के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा करते हुए हिन्दी की मौलिकता और रचनात्मकता पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभावों की ओर ध्यान आकृष्ट किया।

कार्यक्रम का कुशल संयोजन एवं संचालन प्रो. शंभुनाथ तिवारी, प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ एम.ए. (पूर्वार्द्ध) के छात्र अशरफ द्वारा पवित्र क़ुरआन की आयतों के पाठ से किया गया। एम.ए. (पूर्वार्द्ध) की छात्रा, कुलसूम शमीम ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव, जनसंपर्क अधिकारी, हिन्दी अधिकारी, हिन्दी विभाग के समस्त संकाय सदस्यों के अतिरिक्त बड़ी संख्या में विद्यार्थी व शोधार्थी आनलाइन माध्यम से कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।

 

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