अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी सेल द्वारा ‘पेटेंट फाइलिंग, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर एंड कमर्शियलाइजेशन‘ विषय पर आनलाइन वर्कशाप का आयोजन किया गया। वर्कशाप में भाग लेने वाले विशेषज्ञों ने पेटेंट के माध्यम से किसी भी उत्पाद, डिजाइन या प्रक्रिया की रक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
मुख्य अतिथि, अमुवि कुलपति, प्रोफेसर तारिक मंसूर ने एएमयू से अधिक से अधिक बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) दाखिल करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय और पेटेंट एक दूसरे को लाभान्वित करते हैं। आईपीआर विश्वविद्यालयों को उनकी रैंकिंग में सुधार करने, एक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने, ज्ञान-आधारित स्टार्ट-अप को इनक्यूबेट करने और अनुसंधान गतिविधि को बढ़ाने में मदद करते हैं।
कुलपति, प्रोफेसर मंसूर ने हाल ही में एएमयू से अधिक पेटेंट के लिए एएमयू आईपीआर नीति को मंजूरी प्रदान की है।
प्रोफेसर परवेज मुस्तजाब (डीन, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संकाय) ने 2007 से आईपीआर प्रसार पर अपने काम के बारे में बताते हुए कहा कि किस प्रकार उन के शोध ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा एएमयू के इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी कालेज में एक विशेष सहायक प्रोफेसर (आईपीआर) पद की मंजूरी का मार्ग प्रशस्त किया।
बौद्धिक संपदा के महत्व पर बोलते हुए प्रोफेसर वसीम अहमद (डीन, जीवन विज्ञान संकाय) ने कहा कि विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा पेटेंट के लिए किये गये आवेदन तथा स्वीकृत होने वाले पेटेंट की संख्या का रैकिंग में महत्वपूर्ण भूमिका है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शीर्ष रैंक पाने वाले संस्थान और विश्वविद्यालय पेटेंट दाखिल करने में भी सब से आगे हैं।
प्रोफेसर राकेश भार्गव (डीन, फैकल्टी आफ मेडिसिन) ने जोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय नवाचार और पेटेंटिंग के महत्वपूर्ण पहलू पर भरोसा करते हैं। नवाचार और पेटेंट आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं और ऐसी परियोजनाएं जो नवाचार और स्टार्ट-अप के विकास का समर्थन करती हैं, उनमें बेरोजगारी को कम करने की बड़ी संभावनाएं हैं।
प्रोफेसर मोहम्मद अशरफ (डीन, विज्ञान संकाय) ने बौद्धिक संपदा अधिकारों के इतिहास और महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आईपीआर तकनीकी प्रगति को बढ़ाता है क्योंकि यह चोरी, अनाधिकृत उपयोग और उल्लंघन से निपटने का एक तंत्र है। यह व्यापार रहस्यों और अघोषित सूचनाओं को सुरक्षा प्रदान करता है जिनकी उद्योगों, अनुसंधान और विकास संस्थानों में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
प्रोफेसर एम एस जमील असगर (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग) ने पेटेंट आवेदन दाखिल करने के वास्तविक जीवन के अनुभवों को साझा किया।
श्री संप्रति बसंत (सीनियर पेटेंट अटार्नी, पैन एशियन आईपी सर्विसेज, नई दिल्ली) ने प्रोफेसर रिजवान हसन खान (इंटरडिसिप्लिनरी बायोटेक्नोलाजी यूनिट) द्वारा संचालित एक सत्र में भारत में पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया और पेटेंट के अनुदान से पूर्व के चरणों के बारे में बताया।
डाक्टर संजीव कुमार मजूमदार (मैनेजर, आईपीआर एंड इन्क्यूबेशन, राष्ट्रीय अनुसंधान विकास सहयोग, नई दिल्ली) ने अमुवि के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद अतहर द्वारा संचालित एक सत्र में अकादमिक और अनुसंधान संस्थानों में विकसित प्रौद्योगिकियों के हस्तानांतरण और इस को बढ़ावा देने के महत्व पर बात की।
डाक्टर मयंक द्विवेदी (निदेशक, उद्योग इंटरफेस और प्रौद्योगिकी प्रबंधन निदेशालय, डीआरडीओ मुख्यालय, नई दिल्ली) ने प्रौद्योगिकी व्यवसायीकरण, रक्षा से संबंधित प्रौद्योगिकियों के विकास की आवश्यकता और रक्षा प्रौद्योगिकियों में मौलिक अनुसंधान को बढ़ावा देने में शिक्षाविद कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, के बारे में बताया। । प्रोफेसर सलीम अनवर (मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग) ने इस सत्र की मेजबानी की।
प्रोफेसर मोहम्मद अजहरुद्दीन मलिक (कार्डियोलाजी विभाग) ने कार्यशाला के सहभागियों से उनके विचारों पर बात कि जबकि डाक्टर मोहम्मद इमरान (सहायक प्रोफेसर, आईपीआर) ने प्रश्नोत्तर सत्र का संचालन किया।
डाक्टर सैयद जावेद अहमद रिज़वी (बौद्धिक संपदा प्रकोष्ठ के संयोजक) ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यशाला में कनाडा, ताइवान, ईरान, सऊदी अरब, यमन और यूनाइटेड किंगडम में स्थित उद्योगों और पेशेवर संगठनों के प्रतिभगियों ने सहभाग किया। कार्यशाला के लिए आईआईटी दिल्ली, एआईआईएमएस, नई दिल्ली, आईआईटी मद्रास, आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी बाम्बे, मद्रास विश्वविद्यालय, जेएमआई, नई दिल्ली, एचबीटीयू, कानपुर, सीआईपीईटी, मुरथल, एमआईटी, पुणे और अनुसंधान और विकास संगठनों जैसे इसरो और डीआरडीओ के 500 से अधिक प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया था।