एक सूत्र में बांधने की क्षमता केवल भारतीयों में- प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी

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अलीगढ़, 15 सितंबरः स्वतंत्रता के 75 वर्ष आज़ादी का अमृत महोत्सव और हिंदी दिवस  के उपलक्ष्य में वीमेन्स कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के द्वारा त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय व्याख्यान माला का आयोजन किया गया जिसमे विश्व प्रसिद्ध साहित्यकारों, चिंतको और भाषाविदों को आमंत्रित किया गया।

उद्घाटन सत्र का आरंभ नीदरलैंड की प्रसिद्ध लेखिका प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी के व्याख्यान से हुआ। उन्होंने आज़ादी के अमृत महोत्सव में आज़ादी का अस्तित्व, आम आदमी की अस्मिता पर चर्चा की तथा भारत की आज़ादी में सभी धर्मों, वर्णाे, जातियों और वर्गों के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह देश अनगिनत पंथों का देश है, यहां की सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, एवं भाषा भिन्न होते हुए भी एक सूत्र में बांधने की जो क्षमता इस देश के नागरिकों में है वो किसी और देश मे प्रतीत नहीं होती है। विश्वबन्धुत्व की संवेदना जो इस देश के भारतीयों और भारतवंशियों की है वो किसी दूसरे देश के डीएनए में नहीं मिलती है। इसी कारण वो विश्व के अनेक देशों में भारतीयता का झण्डा फहरा रहे है। नस्लभेद का भी शिकार हो रहे है लेकिन अपनी प्रज्ञा और मेधा के स्तर पर वो सबका ध्यान भी अपनी ओर खींचने में अग्रसर है। कैरिबियाई देशों में भारतवंशियों ने अलग ही मुकाम हासिल किया है वो हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई से पहले स्वयं को भारतीय मानते है और आपस मे ही शादी ब्याह करते है तथा भारतीय परम्पराओ का भी निर्वहन सहर्ष करते है।

प्रोफेसर श्रद्धा सिंह (काशी) ने स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी एनी बेसेंट के विशेष संदर्भ में महत्त्वपूर्ण  व्याख्यान दिया। उन्होंने भारतीय संस्कृति, संस्कार का गौरवगान करने के क्रम में भारत को अपना देश मानने वाली अनेक वीरांगनाओ का ज़िक्र किया जिन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया तथा मानवता की रक्षा के लिए उनके द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। हमारे देश की संस्कृति ने उनको इतना लुभाया कि उन्होंने अपना नाम बदल लिया और इसी क्रम में भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद गई हालांकि बहुत सी महिलाओ की जन्मस्थली इंग्लैंड ही थी। लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ो का विरोध किया और भारत के लिए अंतिम समय तक लड़ती रहीं

हमबर्ग यूनिवर्सिटी जर्मनी से डा. राम प्रसाद भट्ट ने वैश्विक स्तर पर हिंदी की दशा-दिशा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर गम्भीर व्याख्यान दिया उन्होंने हिंदी के साथ हो रहे,  दोहरे व्यवहार को रेखांकित किया तथा जर्मनी के कई हिंदी विद्वानों का भी ज़िक्र किया और उनकी उपलब्धियों को भी गिनाया। इसी संदर्भ में कई ऐसी जगह का वर्णन किया जहां पहले हिंदी में लिखा हुआ था लेकिन अब वहां से कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोगो ने हटा दिया और एक भाषा को हानि पहुंचाने का कार्य किया।

उन्होंने कहा कि हिंदी के विभाग जर्मनी की यूनिवर्सिटी में 19 शताब्दी से है। वहां अनेक छात्र-छात्राए आज भी हिंदी को सीखते है। इंडोलाजी में हिंदी, उर्दू को भिन्न नहीं समझा जाता है बल्कि दोनो भाषाओं को सामान दृष्टि से देखा जाता है।

प्रोफ़ेसर नईमा गुलरेज़ प्राचार्या वीमेंन्स कालेज, कार्यक्रम की अध्यक्षता की जबकि प्रोफेसर रेशमा बेगम ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर हिंदी विभाग से प्रोफ़ेसर अब्दुल अलीम प्रोफेसर इफ्फत असग़र, प्रो. शम्भूनाथ तिवारी, प्रोफेसर रूमाना सिद्दीकी प्रो. अस्मा, डा नाज़िश, डा. राहेला रईस, डा. सना फातिमा वाङ्गमय पत्रिका के संपादक डा. एम. फ़ीरोज़ ख़ान एवं अकरम हुसैन और बहुत से छात्र-छात्राओं शोधार्थियों ने भाग लिया।कार्यक्रम का संचालन अनुसंधान पत्रिका की संपादक डॉ. शगुफ्ता नियाज़ ने किया ।

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