6 दिसंबर 1992: जानें इस दिन की पूरी कहानी, जब अयोध्या से बदल गई पूरे देश की राजनीति

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6 दिसंबर 1992, आजाद भारत के इतिहास में यह तारीख काफी अहम है. इस तारीख का असर इस बात से समझा जा सकता है कि आज भी यूपी में इस दिन संवेदनशीलता चरम पर होती है. हर बार की तरह इस बार भी यूपी में इस तारीख को लेकर सब सजग हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार का कहना है कि प्रदेश में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं. 6 दिसंबर के लिए 150 कंपनी पीएसी और 6 कंपनी केंद्रीय अर्धसैनिक बल तैनात किए गए हैं. इसके अलावा तीनों धार्मिक स्थल अयोध्या काशी और मथुरा की सुरक्षा व्यवस्था अलग से की गई है.

असल में 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में उग्र कारसेवकों की एक भीड़ ने बाबरी मस्जिद का ढहा दिया था. उस समय यूपी में बीजेपी की सरकार थी और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. आइए आज हम आपको अयोध्या विवाद का पूरा किस्सा और इसकी राजनीतिक पृष्ठभूमि को विस्तार से बताते हैं.

सबसे पहले अयोध्या विवाद की राजनीतिक पृष्ठभूमि को समझिए

अहम बिंदु

आजाद भारत के धार्मिक और राजनीतिक मसले इस कदर एक-दूसरे से जुड़े हैं कि कई बार इन्हें अलग से देख पाना संभव नहीं. अयोध्या का मामला भी कुछ ऐसा ही है. यही वजह है कि अयोध्या विवाद को समझने से पहले हमें इसकी राजनीतिक पृष्ठभूमि को समझना होगा. इसे समझने के लिए आपको हिंदुस्तान के 80 की दशक वाली राजनीति की ओर चलना होगा. यह वह दौर था, जब देश में कांग्रेस विरोध की राजनीति विपक्षी एकजुटता की अहम कड़ी थी.

तब कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए बीजेपी ने जब वीपी सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन दिया. हालांकि यह गठजोड़ तब बीजेपी के लिए असमंजस की स्थिति वाला बन गया जब वीपी सरकार की तरफ से मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू किए जाने का फैसला हुआ.

कुछ नेताओं की राय में यह हिंदू समाज को विभाजित करने का एक षड्यंत्र था. दूसरे कई नेताओं की राय थी कि पिछड़े वर्गों के लिए सकारात्मक कदमों की शुरुआत उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक जरूरी कदम थी.

ऐसे में बीजेपी और आरएसएस की शाखाओं में इस पर बहसें हुईं कि मंडल आयोग की रिपोर्ट का समर्थन किया जाए या नहीं. मगर इस मुद्दे पर एक खास रुख अपनाने की बजाए बीजेपी ने राजनीतिक बहस को दूसरी तरफ मोड़ने की कोशिश की. पार्टी ने धर्म का मुद्दा चुना और अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू करने का फैसला किया.

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